- आनंद मुखर्जी
- 15 September 2021
- 798
बरखा, बहार और बॉलीवुड
बरसात के सदाबहार हिंदी गीतों पर एक नज़र
बरसात का मौसम कला की हर विधा को लुभाता रहा है। ना सिर्फ़ प्रकृति, बल्कि कलाकार भी बरसात के दिनों में कुछ नया रचने प्रेरित होते हैं। फ़िल्मकार और उनकी फ़िल्में भी इससे अछूती नहीं हैं। जहां निर्देशकों में बरसात के इस्तेमाल से सीन को भव्य बनाने का जोश रहता है, वहीं निर्माता भी इसके नाटकीय महत्व को समझते हैं, फिर चाहे बरसात को फ़िल्माने में शूटिंग का बजट लाखों रुपया बढ़ जाये। जहां तक रही गीत संगीत की बात, तो पर्दे पर होती बरसात को अक्सर रोमांस से जोड़ा जाता है। कभी बारिश में भीगते नायक-नायिका मिलन की आस संजोते हैं, तो कभी यही बारिश विरह में डूबे प्रेमियों के दर्द को और तीव्र करती है। यही वजह है कि हिंदी फ़िल्मों के लगभग हर अहम गीतकार ने कभी ना कभी बरसात के गाने लिखे हैं और इस अनूठे मौसम के अहसास को अपने शब्द दिये हैं। कभी सीधा बरसात, बादल, सावन, पानी जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ है तो कभी लिरिक्स में सीधा ज़िक्र नहीं हुआ पर गीत का फ़िल्मांकन बरसात में हुआ या बैकग्राउंड में बारिश होती रही।
कहा जा सकता है कि बरसात का मौसम हिन्दी सिनेमाई गीत संगीत के एक जाने-पहचाने तत्व के रूप में हमारी ज़िंदगियों का हिस्सा है। यही कारण है कि एक ज़माने से बारिश से जुड़े खुशनुमां गीतों का चलन चला आ रहा है। हम सभी इन गीतों की धुनों को जानते हैं और बारिश की बूंद पड़ते ही इनके बोल गुनगुनाने लगते हैं। हमें ये भी याद होता है कि अमुक गीत किस फ़िल्म का है, पर्दे पर किन कलाकारों पर फ़िल्माया गया है, और किन गायकों ने इसे अपनी आवाज़ से सजाया है। बहुत सारे लोग तो संगीतकार का नाम भी बता देंगें। पर हम अक्सर नहीं जान पाते कि बारिश के इस ख़ूबसूरत गीत को लिखने वाले गीतकार कौन हैं। आप यूट्यूब पर जायें, गीत का मज़ा लें पर नीचे गीतकार का नाम नदाराद मिलेगा। यहां तक ढूँढ़ने जायेंगे तो गूगल भी आपको छका कर ही दम लेगा। यही वजह है कि स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन हमेशा इस बात पर ज़ोर देता है कि ना सिर्फ़ पर्दे पर राइटर्स को उनका सही क्रेडिट मिले बल्कि और जहां जहां उनका काम देखा सुना जाता है, वहां उनके बक़ायदा ज़िक्र हो। ये कोई ग़ैरवाजिब मांग तो नहीं लगती, है ना? पर क्रेडिट देने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ़ निर्माता को देना शायद सही नहीं है। ये मांग अगर दर्शक से आये कि बताइये, हमारा ये पसंदीदा गीत किसने लिखा है, तो अपने आप क्रेडिट लिखा भी जाने लगेगा।
तो आइये, और देखते हैं बारिश के मौसम के कुछ यादगार नगमों के बोल और जानते हैं उनके गीतकारों के नाम।
श्वेत श्याम फ़िल्मों के ज़माने में राज कपूर ने ही बरसात के नाटकीय महत्व को समझ लिया था। पहले 1949 फ़िल्म ‘बरसात’ में उन्होंने गीत रखा ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे हम’ जिसमें बारिश का ज़िक्र तो था पर उसे बारिश के साथ फ़िल्माया नहीं गया था। शैलेंद्र के लिखे इस गीत को संगीतबद्ध किया था शंकर जयकिशन ने और गाया था लता मंगेशकर ने। बोल देखिये -
तक धिना दिन
तक धिना दिन
बरसात में तक धिना दिन
बरसात में हमसे मिले
तुम सजन
बरसात में तक धिना दिन
बरसात में तक धिना दिन
बरसात में हमसे मिले
तुम सजन
बरसात में तक धिना दिन
नैनो पे चलके गी मस्त जवानी
मेरी मस्त जवानी
कहती फिरे दुनिया से दिल की कहानी
मेरे दिल की कहानी
उनकी मैं जो उनसे केसी सरम
उनकी मैं जो उनसे केसी सरम
बरसात में तक धिना दिन
बरसात में हमसे मिले
तुम सजन
बरसात में तक धिना दिन
प्रीत ने स्वीकार किया
ऐसा निकुल हूँ ऐसा निकुल हूँ
सपनों की रिम झिम में
नाच उठा मैं
मेरा नाच उठा मैं
आज मैं तुम्हारी हुयी
तुम मेरे सनम
आज मैं तुम्हारी हुयी
तुम मेरे सनम
तुम मेरे सनम
बरसात में तक धिना दिन
बरसात में हमसे मिले
तुम सजन
बरसात में तक धिना दिन
यह समां है जा रहे हो
कैसे मनाऊं
यह समां है जा रहे हो
कैसे मनाऊं
मैं तुम्हारी राहों में यह
नैन बिछउ
यु ना आओ रूप मेरी
जान की कसम
बरसात में
बरसात में हमसे मिले
तुम सजन
बरसात में
देर ना करना कही यह आस
टूट जायें साथ छूट जाये
देर ना करना कही यह आस
टूट जायें साथ छूट जाये
तुम ना आओ
मुझको ही जलाये
खाक में मिलाएं
आग की लपटों में पुकारे
मेरा मैं
मिल ना सके ख्वाब हाय
मिल ना सके हम
मिल ना सके ख्वाब हाय
मिल ना सके हम।
इसके बाद 1955 की फ़िल्म ‘श्री420’ में राज कपू ने बरसात को फ़िल्मा भी लिया और हमें दिया यादगार नगमा ‘प्यार हुआ इक़रार हुआ’। गीतकार और संगीतकार वही, शैलेंद्र और शंकर-जयकिशन जबकि इस बार गायकी में लता मंगेशकर का साथ दिया मन्ना डे ने। इसके बोल थें -
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
कहो की अपनी
प्रीत के गीत का
बदलेगा कभी
तुम भी कहो इस
राह का मीत ना
बदलेगा कभी
प्यार जो टुटा प्यार
जो छूटा चाँद ना
चमकेगा कभी
आहा हा हा हा
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
रातो दसों दिशाओं से
कहेगी अपनी कहियाँ
प्रीत हमारे प्यार की
दोहराएगी जवनिया
मै न रहूगी तुम न रहोगे
फिर भी रहेगी निशानियाँ
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
कहता है दिल रास्ता मुश्किल
मालुम नहीं है कहाँ मंज़िल
प्यार हुआ इकरार हुआ है
प्यार से फिर क्यों डरता है दिल।
इसी तरह और भी कमाल के गीत रहें जैसे मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा ‘एक लड़की भीगी भागी सी’ (फ़िल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’, 1958, संगीतकार एसडी बर्मन, गायक किशोर कुमार) और ‘डम डम डिगा डिगा मौसम भिगा भिगा’ (फ़िल्म ‘छलिया’, 1960, संगीतकार कल्याण जी-आनंद जी, गायक मुकेश) जिसे लिखा था क़मर जलालाबादी ने।
बरसात में गीत फिल्माने के मोह से मनोज कुमार भी बच नहीं पाए। उन्होंने फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ में एक बरसात का गीत फिल्माया था जो 1974 में रिलीज़ हुई थी। इसे लिखा था वर्मा मालिक ने, संगीत था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का, आवाज़ लता मंगेशकर की। गाने के बोल हैं -
अरे हाय हाय ये मज़बूरी
ये मौसम और ये दूरी
अरे हाय हाय ये मज़बूरी
ये मौसम और ये दूरी
मुझे पल पल है तड़पाये
तेरी दो टकिया दी नौकरी में
मेरा लाखों का सावन जाये
कितने सावन बीत गये
बैठी हूँ आस लगाये
जिस सावन में मिले सजनवा
वो सावन कब आये... कब आये
मधुर मिलन का ये सावन हाथों से निकला जाये
तेरी दो टकिया दी नौकरी में
मेरे लाखों का सावन जाये
अरे हाय हाय ये मज़बूरी
ये मौसम और ये दूरी
मुझे पल पल है तड़पाये
तेरी दो टकिया दी नौकरी में
मेरा लाखों का सावन जाये
अरे हाय हाय ये मज़बूरी
ये मौसम और ये दूरी
प्रेम का ऐसा बंधन है
प्रेम का ऐसा बंधन है...
जो बन्धके फ़िर ना टूटे
अरे नौकरी का है क्या भरोसा
आज़ मिले कल छूटे... कल छूटे
अम्बर पे है रचा स्वयंवर
फ़िर भी तू घबराये
तेरी दो टकिया दी नौकरी में
मेरा लाखों का सावन जाये
डंग डिंग, डंग डिंग, डिंग डंग डांग
डंग डिंग, डंग डिंग, डिंग डंग डांग
मुझे पल पल है तड़पाये
तेरी दो टकिया दी नौकरी में
मेरा लाखों का सावन जाये
अरे हाय हाय ये मज़बूरी
ये मौसम और ये दूरी।।
इस गीत को उस दौर की एक मशहूर अभिनेत्री ज़ीनत अमान पर फिल्माया गया था। परदे पर ज़ीनत का रोमांटिक अंदाज कुछ ऐसा था जिसके लिए निर्देशक मनोज कुमार की उस समय खूब आलोचना हुई थी। लेकिन दूसरी ओर टिकट खिड़की पर ‘रोटी कपड़ा और मकान’ सुपरहिट साबित हुई थी। उस दौर में बरसात गीत फिल्म की सफलता की गारंटी बन गई थी।
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सैकड़ों गानों की धुने बनायी हैं। उन सैकड़ों गानों मे कोई तो ऐसा गाना होगा जो उन्हें बेहद प्रिय है। तो संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का सबसे पसंदीदा गाना है फिल्म ‘मिलन’ का जिसे लिखा है आनंद बक्शी ने और गाया है मुकेश और लता मंगेशकर ने। ‘मिलन’ 1967 में आई थी। गाने के बोल हैं-
हम्म हम्म हम्म हम्म
हम्म हम्म हम्म
सावन का महीना पवन करे सोर
सावन का महीना पवन करे शोर
अम्म हम्म पवन करे सोर
पवन करे शोर
अरे बाबा शोर नहीं सोर सोर
सौर पवन करे सोर हाँ……
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
सावन का महीना पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
सावन का महीना पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
रामा गजब ढाये
यह पुरवैय्या
नैय्या सम्भालो किस
खोये हो खिवैय्या
रामा गजब ढाये
यह पुरवैय्या
नैय्या सम्भालो किस
खोये हो खिवैय्या
होय पुरवैया के आगे
चले ना कोई जोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
ओ ओ ओ….. सावन का
महीना पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
मौजवा करे क्या
जाने हमको इसारा
जाना कहा है पूछे
नदिया की धारा
मौजवा करे क्या
जाने हमको इसारा
जाना कहा है पूछे
नदिया की धारा
मौजवा करे क्या
जाने हमको इसारा
जाना कहा है पूछे
नदिया की धारा
मर्जी है तुम्हारी ले जाओ जिस ओर
जियरा रे झूमे रे अइसे रे
जैसे बनमा नाचे मोर
ओ ओ ओ….. सावन का
महीना पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
जिनके बालम बैरी
गए हैं बिदेसवा
आये हैं लेके उनके
प्यार का संदेसवा
जिनके बालम बैरी
गए हैं बिदेसवा
आये हैं लेके उनके
प्यार का संदेसवा
कारी मतवारी
घटाये घन घोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
सावन का महीना
पवन करे सोर
जियरा रे झूमे ऐसे
जैसे बनमा नाचे मोर
जियरा रे झूमे रे अइसे रे
जैसे बनमा नाचे मोर।
जैसा हमने पहले कहा, बरसात के कुछ गाने ऐसे भी हैं जिन्हें बारिश में फिल्माया नहीं गया लेकिन बोल या सिचुएशन के आधार पर वे बारिश के गीत हैं। जैसे फिल्म ‘जीवन मृत्यु’ 1970 एक लोकप्रिय गीत है जिसे आनंद बक्शी ने लिखा, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संगीत दिया और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गाया। गाने के बोल हैं-
झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा
झिलमिल सितारों का आँगन होगा...
प्रेम की गली में एक छोटा सा घर बनाएंगे
कलियाँ ना मिले ना सही काँटों से सजाएंगे
बगियाँ से सुंदर वो बन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
तेरी आँखों से सारा संसार मैं देखूँगी
देखूँगी इस पार या उस पार मैं देखूँगी
नैनों को तेरा ही दर्शन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा
फिर तो मस्त हवाओं के हम झोके बन जाएंगे
नैना सुन्दर सपनों के झरोखे बन जाएंगे
मन आशाओं का दर्पण होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा।
बारिश हो रही हो और आप भीग रहे हों तो कौन सा गाना गुनगुनाएंगे, मेरे खयाल से यह सही रहेगा जो है फिल्म ‘सबक’, 1973, से। गीतकार सावन कुमार, संगीत उषा खन्ना और गायक हैं मुकेश -
बरखा रानी
ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाए
झूमकर बरसो
बरखा रानी
बरखा रानी
ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाए
झूमकर बरसो
बरखा रानी
ये अभी तो आये है
कहते है हम जाए है
ये अभी तो आये है
कहते है हम जाए है
यूँ बरस बरसों बरस
ये उम्र भर न जाए रे
बरखा रानी
ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाए
झूमकर बरसो
बरखा रानी
मस्त सावन की घटा
बिजुरिया चमका ज़रा
मस्त सावन की घटा
बिजुरिया चमका ज़रा
यार मेरा डर के मेरे
सीने से लगा जाए रे
बरखा रानी
ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाए
झूमकर बरसो
बरखा रानी
बरखा रानी
ज़रा जम के बरसो
मेरा दिलबर जा ना पाए
झूमकर बरसो
बरखा रानी।
जो मुंबई में बरसों से रह रहे हैं उन्हें यदि बरसों पहले का मुंबई देखना हों तो फिल्म ‘मंज़िल’ का यह गीत देख लें। ‘मंज़िल’ 1979 में आई थी। गीतकार हैं योगेश, संगीतकार हैं आरडी बर्मन और गायक हैं किशोर कुमार। बोल हैं-
रिम-झिम गिरे सावन,
सुलग-सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में,
लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन,
सुलग-सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में,
लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन..
जब घुंघरुओं सी बजती हैं बूंदे,
अरमाँ हमारे पलके न मूंदे
जब घुंघरुओं सी बजती हैं बूंदे,
अरमाँ हमारे पलके न मूंदे
कैसे देखे सपने नयन,
सुलग-सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में,
लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन..
महफ़िल में कैसे कह दें किसी से,
दिल बंध रहा है किस अजनबी से
महफ़िल में कैसे कह दें किसी से,
दिल बंध रहा है किस अजनबी से
हाय करे अब क्या जतन,
सुलग-सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में,
लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन,
सुलग-सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में,
लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन।
सिर्फ़ फ़िल्म ही नहीं, इंडी पॉप और प्राइवेट एलबम की दुनिया में भी बरसात के मौसम पर हिट गीत रच गये हैं। साल 2000 के एलबम 'पिया बसंती' के उस टाइटल गीत को कौन भूलेगा जिसे सुल्तान ख़ान साहब और चित्रा ने गाया है, और जो आज भी उतना ही ताज़ा लगता है। इसके गीतकार का नाम है, अखिलेश शर्मा। बोल देखिये -
पिया बसंती रे
काहे सताए आजा
जाने क्या जादू किया
प्यार की धुन छेड़े जिया
काहे...
बादल ने अंगड़ाई ली जो कभी, लहराया धरती का आँचल
ये पत्ता-पत्ता, ये बूटा-बूटा, छेड़े है कैसी ये हलचल
मनवा ये डोले, जाने क्या बोले
मानेगा ना मेरा जिया
तेरे है हम तेरे पिया
काहे सताए...
पलकों के सिरहाने बैठे, ख्वाब वही जो आने वाले
दिल की गिरहा-गिरहा खोले, मन में प्यार जगाने वाले
सतरंगी सपने बोले रे
काहे सताए...
इसी तरह शुभा मुदग्ल का गाया गीत ‘अबके सावन ऐसे बरसे’ भी याद पड़ता है, जिसे शांतनु मोइत्रा ने धुन से सजाया और लिखा प्रसून जोशी ने। फिर गायक अदनान सामी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचाने वाला गीत ‘भीगी भीगी रातों में’ भी है जिसे अदनान सामी ने ही कम्पोज़ किया था और लिखा था रियाज़-उर-रहमान साघर ने।
1970 के बाद दशकों में मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने भी बरसात की सिचुएशन पर कई गीत लिखे जिनमें प्रमुख हैं ‘अबके सजन सावन में’ (फ़िल्म ‘चुपके चुपके’ 1975, संगीतकार एसडी बर्मन, गायिका लता मंगेशकर); ‘टिप टिप बरसा पानी’ (फ़िल्म ‘मोहरा’ 1994, संगीतकार विजू शाह, गायक उदित नारायण और अल्का याज्ञनिक); ‘कोई लड़की है जब वो हंसती है’ (फ़िल्म ‘दिल तो पागल है’ 1997, संगीत उत्तम सिंह, गायक उदित नारायण और लता मंगेशकर)। वहीं अंजान ने लिखा ‘आज रपट जाये तो हमें ना उठाइयो’ (फ़िल्म ‘नमक हलाल’ 1982, संगीतकार बप्पी लहरी, गायक किशोर कुमार और आशा भोंसले)। हालिया के वर्षों में भी बरसात के कई गाने हिट हुये हैं क्योंकि हर पीढ़ी इस मौसम के अहसास से ख़ुद को जोड़ सकती है। इसी वजह से बरसात के इन मनभावन हिंदी गीतों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि शायद एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। कम से कम हम लेखकों को ये संकल्प लेना चाहिये कि हम जब भी ऐसे गीतों को याद करेंगे तो उनके गीतकारों का नाम भी लेंगे।
(सहयोग: दिनकर शर्मा)

आनंद मुखर्जी स्तंभकार और पत्रकार रहे हैं। पहली लघुकथा टाइम्स ग्रुप की सारिका में सन 1979 में छपी। एक्सप्रेस ग्रुप से प्रकाशित मशहूर फिल्म साप्ताहिक स्क्रीन का हिन्दी संस्करण शुरू किया। एक्सप्रेस ग्रुप के बाद रिलायंस कम्यूनिकेशन के कंटेन्ट विभाग में लगभग 12 वर्ष तक कार्य किया। गीतों और गीतकारों में विशेष रुचि। संपर्क: anand.mukherjee07@gmail.com